नई दिल्ली: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे oil (तेल) की कीमतों में आई भारी गिरावट के बावजूद भारतीय उपभोक्ताओं को इसका कोई खास फायदा नहीं मिलेगा। विभिन्न रिपोर्टों और विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी मुख्य वजह सरकार द्वारा लगाया जाने वाला उत्पाद शुल्क (Excise Duty) है।
दरअसल, जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तो आम तौर पर यह उम्मीद की जाती है कि घरेलू स्तर पर पेट्रोल और डीजल के दाम भी कम होंगे, जिससे आम आदमी को राहत मिलेगी। हालांकि, भारत में अक्सर ऐसा नहीं होता है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सरकारें इस अवसर का उपयोग अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए करती हैं। जब कच्चे तेल की कीमतें कम होती हैं, तो सरकार पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को बढ़ा देती है। और आज, ऐसा ही सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क (Excise Duty) में ₹2 प्रति लीटर की वृद्धि की है। यह बदलाव 8 अप्रैल, 2025 से लागू होगा।
इस वृद्धि के बाद, पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क ₹13 प्रति लीटर और डीजल पर ₹10 प्रति लीटर हो गया है।
उत्पाद शुल्क क्या है?
उत्पाद शुल्क एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है जो देश के भीतर उत्पादित वस्तुओं पर लगाया जाता है। पेट्रोलियम उत्पादों जैसे पेट्रोल और डीजल पर केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अलग-अलग तरह के कर लगाती हैं, जिसमें उत्पाद शुल्क भी शामिल है। यह शुल्क प्रति लीटर के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
क्यों नहीं मिल रहा गिरावट का फायदा?
जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल सस्ता होता है, तो तेल कंपनियां कम कीमत पर कच्चा तेल खरीदती हैं। सैद्धांतिक रूप से, उन्हें इस बचत को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना चाहिए। लेकिन, यदि सरकार इस दौरान उत्पाद शुल्क में वृद्धि कर देती है, तो तेल कंपनियों की बचत का एक बड़ा हिस्सा सरकार के राजस्व में चला जाता है और उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में कोई खास कमी नहीं हो पाती।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारें अक्सर वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने और राजस्व की कमी को पाटने के लिए इस तरह के कदम उठाती हैं। पेट्रोलियम उत्पाद सरकार के लिए राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। जब अन्य स्रोतों से आय कम होती है, तो सरकारें उत्पाद शुल्क बढ़ाकर इसकी भरपाई करने की कोशिश करती हैं।
आम आदमी पर क्या होगा असर?
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद अगर घरेलू स्तर पर पेट्रोल और डीजल के दाम कम नहीं होते हैं, तो
इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है। परिवहन लागत अधिक बनी रहती है, जिससे महंगाई भी नियंत्रित नहीं हो पाती। आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की लागत भी उच्च बनी रहती है।
क्या है,आगे की राह?
यह एक जटिल आर्थिक मुद्दा है। सरकार को राजस्व की जरूरत भी है और आम आदमी को महंगाई से राहत दिलाना भी उसकी जिम्मेदारी है। इस स्थिति में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को उत्पाद शुल्क को एक निश्चित सीमा के भीतर रखना चाहिए ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में गिरावट का लाभ कुछ हद तक उपभोक्ताओं तक पहुंच सके।
फिलहाल, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के बाद भी भारतीय उपभोक्ताओं को राहत मिलने की उम्मीद कम है, क्योंकि सरकार के उत्पाद शुल्क संबंधी निर्णय इस लाभ को निष्प्रभावी कर सकते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे पर आगे क्या रु
ख अपनाती है।

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